Friday 27 May 2016

आधुनिक काल

मराठा

राजपूतों और मुग़लों के योग से उसने अपना साम्राज्य कन्दहार से आसाम की सीमा तक तथा हिमालय की तलहटी से लेकर दक्षिण में अहमदनगर तक विस्तृत कर दिया। उसके पुत्र जहाँगीर जहाँ पौत्र शाहजहाँ के राज्यकाल में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार जारी रहा। शाहजहाँ ने ताजमहल का निर्माण कराया, परन्तु कन्दहार उसके हाथ से निकल गया। अकबर के प्रपौत्र औरंगज़ेब के राज्यकाल में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार अपने चरम शिखर पर पहुँच गया और कुछ काल के लिए सारा भारत उसके अंतर्गत हो गया। परन्तु औरंगज़ेब ने जान-बूझकर अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति त्याग दी और हिन्दुओं को अपने विरुद्ध कर लिया। उसने हिन्दुस्तान का शासन सिर्फ़ मुसलमानों के हित में चलाने की कोशिश की और हिन्दुओं को ज़बर्दस्ती मुसलमान बनाने का असफल प्रयास किया। इससे राजपूताना, बुंदेलखण्ड तथा पंजाब के हिन्दू उसके विरुद्ध उठ खड़े हुए।
Seealso.jpg इन्हें भी देखें: शिवाजी, तानाजी, अहिल्याबाई होल्कर, जाटों का इतिहास, वास्को द गामा, अंग्रेज़ एवं सिपाही क्रांति 1857

ईस्ट इंडिया कम्पनी

अठारहवीं शताब्दी के शुरू में अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बम्बई (मुम्बई), मद्रास (चेन्नई) तथा कलकत्ता (कोलकाता) पर क़ब्ज़ा कर ......continue read

मध्यकालीन भारत

तीन साम्राज्यों का युग (8वीं - 10वीं शताब्दी)

सात सौ पचास और एक हज़ार ईस्वी के बीच उत्तर तथा दक्षिण भारत में कई शक्तिशाली साम्राज्यों का उदय हुआ। नौंवीं शताब्दी तक पूर्वी और उत्तरी भारत में पाल साम्राज्य तथा दसवीं शताब्दी तक पश्चिमी तथा उत्तरी भारत में प्रतिहार साम्राज्य शक्तिशाली बने रहे। राष्ट्रकूटों का प्रभाव दक्कन में तो था ही, कई बार उन्होंने उत्तरी और दक्षिण भारत में भी अपना प्रभुत्व क़ायम किया। यद्यपि ये तीनों साम्राज्य आपस में लड़ते रहते थे तथापि इन्होंने एक बड़े भू-भाग में स्थिरता क़ायम रखी और साहित्य तथा कलाओं को प्रोत्साहित किया।
Seealso.jpg इन्हें भी देखें: पाल साम्राज्य, राष्ट्रकूट साम्राज्य, पृथ्वीराज चौहान, गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य, राजपूत काल एवं चोल साम्राज्य

इस्लाम का प्रवेश

इस बीच 712 ई. में भारत में इस्लाम का प्रवेश हो चुका था। मुहम्मद-इब्न-क़ासिम के नेतृत्व में मुसलमान अरबों ने सिंध पर हमला कर दिया और वहाँ के ब्राह्मण राजा दाहिर को हरा दिया। इस तरह भारत की भूमि......continue read


Thursday 26 May 2016

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत

भारत में मानवीय कार्यकलाप के जो प्राचीनतम चिह्न अब तक मिले हैं, वे 4,00,000 ई. पू. और 2,00,000 ई. पू. के बीच दूसरे और तीसरे हिम-युगों के संधिकाल के हैं और वे इस बात के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि उस समय पत्थर के उपकरण काम में लाए जाते थे। जीवित व्यक्ति के अपरिवर्तित जैविक गुणसूत्रों के प्रमाणों के आधार पर भारत में मानव का सबसे पहला प्रमाण केरल से मिला है जो सत्तर हज़ार साल पुराना होने की संभावना है। इस व्यक्ति के गुणसूत्र अफ़्रीक़ा के प्राचीन मानव के जैविक गुणसूत्रों (जीन्स) से पूरी तरह मिलते हैं। इसके पश्चात एक लम्बे अरसे तक विकास मन्द गति से होता रहा, जिसमें अन्तिम समय में जाकर तीव्रता आई और उसकी परिणति 2300 ई. पू. के लगभग सिन्धु घाटी की आलीशान सभ्यता (अथवा नवीनतम नामकरण के अनुसार हड़प्पा संस्कृति) के रूप में हुई। हड़प्पा की पूर्ववर्ती संस्कृतियाँ हैं: बलूचिस्तानी पहाड़ियों के गाँवों की कुल्ली संस्कृतिऔर राजस्थान तथा पंजाब की नदियों के किनारे बसे कुछ ग्राम-समुदायों की संस्कृति। यह काल वह है जब अफ़्रीक़ा से आदि मानव ने विश्व के अनेक हिस्सों में बसना प्रारम्भ किया जो पचास से सत्तर हज़ार साल पहले का माना जाता है।

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत

भारतीय इतिहास जानने के स्रोत को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता हैं-
  1. साहित्यिक साक्ष्य
  2. विदेशी यात्रियों का विवरण
  3. पुरातत्त्व सम्बन्धी साक्ष्य

साहित्यिक साक्ष्य

साहित्यिक साक्ष्य के अन्तर्गत साहित्यिक ग्रन्थों से प्राप्त ऐतिहासिक वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है। साहित्यिक....continue read

बौद्ध धर्म


बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। इसके संस्थापक भगवान बुद्ध, शाक्यमुनि (गौतम बुद्ध) थे। बुद्ध राजाशुद्धोदन के पुत्र थे और इनका जन्म लुंबिनी नामक ग्राम (नेपाल) में हुआ था। वे छठवीं से पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व तक जीवित थे। उनके गुज़रने के बाद अगली पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ैला, और अगले दो हज़ार सालों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फ़ैल गया। आज, बौद्ध धर्म में तीन मुख्य सम्प्रदाय हैं: थेरवाद, महायान और वज्रयान। बौद्ध धर्म को पैंतीस करोड़ से अधिक लोग मानते हैं और यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है।

मुख्य सम्प्रदाय

बौद्ध धर्म में दो मुख्य सम्प्रदाय हैं:
थेरवाद
थेरवाद या हीनयान बुद्ध के मौलिक उपदेश ही मानता है।
महायान
महायान बुद्ध की पूजा करता है। ये थेरावादियों को "हीनयान" (छोटी गाड़ी) कहते हैं। बौद्ध धर्म की एक प्रमुख शाखा है जिसका आरंभ पहली शताब्दी के आस-पास माना जाता है। ईसा पूर्व पहली शताब्दी में वैशाली में बौद्ध-संगीति हुई जिसमें पश्चिमी और पूर्वी बौद्ध पृथक् हो गए। पूर्वी शाखा का ही आगे चलकर महायान नाम पड़ा। देश के दक्षिणी भाग में इस मत का प्रसार देखकर कुछ विद्वानों की मान्यता है कि इस विचारधारा का आरंभ उसी अंचल से हुआ। महायान भक्ति प्रधान मत है। इसी मत के प्रभाव से बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण आंरभ हुआ। इसी ने बौद्ध धर्म में बोधिसत्व की भावना का समावेश किया। यह भावना सदाचार, परोपकार, उदारता आदि से सम्पन्न थी। इस मत के अनुसार बुद्धत्व की प्राप्ति सर्वोपरि लक्ष्य है। महायान संप्रदाय ने गृहस्थों के लिए भी सामाजिक उन्नति का मार्ग निर्दिष्ट किया। भक्ति और पूजा की भावना के कारण इसकी ओर लोग सरलता से आकृष्ट हुए। महायान मत के प्रमुख विचारकों में अश्वघोष, नागार्जुन और असंग के नाम प्रमुख हैं।....continue read



जैन धर्म

जैन धर्म भारत का प्राचीन धर्म है जोकि हमें मोक्ष के रास्ते के बारे में बताता है और जीवन को हानिहीनता और त्याग के साथ खुशी से जीना है | जैन जीवन का प्रमुख उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति है |  जैन को जीन के अनुयायी  के तौर पर परिभाषित किया जाता है | जीन का अर्थ है विजेता | जैन धर्म बौद्ध धर्म से कई सदी पहले शुरू हो गया था परंतु बाद में महावीर के द्वारा इसे पुनर्जीवित किया गया, जोकि 24वें तीर्थंकार थे | जैन सिद्धांतों के अनुसार , जैन धर्म सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है जिसकी ना ही शुरुआत है और ना ही अंत  है |

जैन धर्म को वैसा शाही संरक्षण प्राप्त नहीं था जैसा कि बौद्ध धर्म को था | हालांकि भिक्षु सक्रिय थे और जैन धर्म को पूरे भारत में फैलाने के लिए एकजुट हो गए | मगध से जैन मथुरा के पश्चिम क्षेत्र की तरफ चले गए और फिर उज्जैन और आखिर में सौराष्ट्र के पश्चिमी तट पर बस गए |
प्रथम सदी ईश्वी के अंत में इस धर्म को विभाजन का सामना करना पड़ा | रूढ़िवादि जैनियों को दिगंबर (आकाश धारक )के नाम से जाना गया और उदार वालों को श्वेतांबर(श्वेत वस्त्र धारक ) के नाम से जाना गया | इन दोनों संप्रदायों के बीच मामूली सा अंतर है |
केवल्य ज्ञान क्या है ?
केवल्य ज्ञान पूर्ण ज्ञान है , प्रबोध और सर्वज्ञता है | केवलिन वह होता है continue read.....